1999 में चुनाव आयोग ने कारगिल विजय की डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण होने से रोका था !

40 महीने के भीतर देश में यह तीसरा लोकसभा चुनाव था। इससे पहले 1998 में ही और उससे पहले 1996 में लोकसभा चुनाव हुए थे।वैसे इस बार का चुनाव और चुनाव प्रचार कई मायनों में खास था।

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : 998 में बनी अटल सरकार 13 महीने बाद ही गिर गई थी। ऐसे में देश में एक बार फिर चुनावी बिगुल बज चुका था। 40 महीने के भीतर देश में यह तीसरा लोकसभा चुनाव था। इससे पहले 1998 में ही और उससे पहले 1996 में लोकसभा चुनाव हुए थे।वैसे इस बार का चुनाव और चुनाव प्रचार कई मायनों में खास था। यह पहला चुनाव था, जो कांग्रेस सोनिया गांधी के नेतृत्व में लड़ रही थी। मगर, यही भाजपा के लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा था। पार्टी ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान विदेशी सोनिया गांधी बनाम स्वदेशी वाजपेयी के मुद्दे को हवा दी।सोनिया गांधी दो जगह से चुनाव लड़ रही थीं। उत्तरप्रदेश के अमेठी तथा कर्नाटक के बेल्लारी से। यह उनका पहला चुनाव था। तब भाजपा ने बेल्लारी से सुषमा स्वराज को मैदान में उतारा और वहां चुनाव को देश की बेटी बनाम विदेशी बहू के तौर पर प्रचारित किया। मगर सोनिया जीत गईं। हालांकि, कांग्रेस 141 से घटकर 114 सीटों पर सिमट गई। इसलिए कि विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस के अंदर भी बगावत थी।महाराष्ट्र के नेता शरद पवार, उत्तर-पूर्व के नेता पीए संगमा और बिहार के तारिक अनवर इसी मुद्दे पर कांग्रेस से अलग हो चुके थे। नई पार्टी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन कर चुके थे। इधर, कारगिल युद्ध खत्म हुआ ही था, इसलिए देश में देशभक्ति का माहौल था। मगर कोई एक पार्टी इसका फायदा न उठा ले, इस उद्देश्य से चुनाव आयोग को विशेष प्रेस रिलीज जारी करनी पड़ी। इसमें आयोग ने सरकार को दूरदर्शन पर कारगिल से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन चुनाव तक रोकने की हिदायत दी। उस समय दूरदर्शन पर कारगिल युद्ध से जुड़ी एक सीरीज दिखाई जा रही थी।चुनाव आयोग ने सेना के लोगों से भी गुजारिश की थी कि वे लाइम लाइट से दूर रहें। हालांकि युद्ध में पाक को करारा जवाब देकर अपने छोटे से कार्यकाल में अटल बिहारी वाजपेयी मजबूत इरादों वाले नेता बनकर उभर चुके थे। इतना ही नहीं पिछले दो वर्षों के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार और सरकार गिर जाने से पैदा हुई सहानुभूति एनडीए को फायदा देते दिखने लगे। यही सब चुनावी नतीजों में नजर भी आया। भाजपा फिर सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। वहीं एक ही साल पहले हुए चुनाव के मुकाबले कांग्रेस 27 सीटें कम ला सकी। इधर, रीजनल पार्टियों की स्थिति और ज्यादा बेहतर होती चली गई। इन्हें कुल 158 सीटें मिलीं। 1952 की पहली लोकसभा में 112 सांसद ऐसे थे, जो मैट्रिक तक भी पढ़े नहीं थे। 13वीं लोकसभा में ऐसे केवल 15 सांसद थे। ग्रेजुएट सांसदों की संख्या भी 177 से बढ़कर 256 तक पहुंच गई थी।भाजपा ने 1999 में सिर्फ 330 सीटों पर ही चुनाव लड़ा, जबकि 1998 में उसने 388 सीटों पर चुनाव लड़ा था। अटलजी की लोकप्रियता के बावजूद भाजपा ने सहयोगियों को ज्यादा सीटें दी थीं।इन चुनावों में कुल 285 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिनमें से 49 ने जीत दर्ज की।सबसे रोचक मुकाबला दो क्षेत्रों में था, एक मधेपुरा और दूसरा बाढ़। मधेपुरा से लालू प्रसाद यादव चुनाव लड़ रहे थे। वहीं बाढ़ से बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पांचवीं बार जीत के लिए मैदान में थे। तमाम प्रयासों के बाद भी लालू यादव चुनाव हार गए। वहीं नीतीश कुमार चुनाव तो जीते, लेकिन मात्र 1500 वोटों से।व्यापक रूप से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल भारत के आम चुनावों में 2004 में हुआ था, लेकिन इसे लोकसभा में पहली बार 1999 के चुनावों में ही आजमाया गया था।

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