(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ वामपंथी लिबरल्स हिंदू धर्म, उनके देवी देवताओं, उनकी मान्यताओं और त्योहारों को लेकर तमाम तरह की हिन्दूफोबिया से ग्रसित अनर्गल बातें करते हुए नजर आते हैं। कभी वो हिन्दुओं के रीति-रिवाजों, परम्पराओं को लेकर अपने घटिया कुतर्क को महान तर्क के रूप में पेश करते हैं, तो कभी त्योहारों खासतौर से नवरात्र और सावन के समय नॉनवेज (माँसाहारी) नहीं खाने को लेकर मजाक उड़ाते हुए नजर आते हैं। यही वामपंथी बुद्धिजीवी लोग इस्लाम में बुरके, तीन तलाक, निक़ाह हलाला, जैसी कई बुराइयों पर चुप्पी साध लेते है। वहाँ इनका तर्क कुंद और जबान आवाज खो देती है। लिखना तो ये सामाजिक सद्भाव में भूल जाते हैं। वहीं हिंदुओं को सॉफ्ट टारगेट समझ कर उनकी मान्यताओं पर व्यंग्य करने में क्षण भर भी देर नहीं लगाते हुए जी जान से लग जाते हैं। आपको पिछला नवरात्र याद होगा। तब भी ऐसे वामपंथी इसी तरह शुरू हो गए थे और अब जब सावन का महीना शुरू हो चुका है, तब लिबरल्स भी इस वक़्त अपने घटिया एजेंडे के साथ जाग चुके है। जहाँ वो बकरीद पर मारी जा रहीं सैकड़ों बकरियों को लेकर आँख मूँद लेते है, वहीं सावन में नॉन वेज नहीं खाने को ढोंग बताते हैं। सावन में भगवान शिव की पूजा के लिए दूध चढ़ाने पर इन्हें दूध की बर्बादी सहित कई ज्ञान और सिद्धांत याद आएँगे। ये वामपंथी हमेशा सिर्फ हिंदुओं की आलोचना करते हुए नजर आएँगे और इसी कर्म से खुद को सेकुलर बताएँगे। वहीं वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि इस महीने में लगभग हर दिन लगातार बारिश होती है और आसमान में बादल छाए रहते हैं। जिसके कारण इस महीने में कई बार सूर्य और चंद्रमा दर्शन भी नहीं देते। सूरज की रोशनी कम मिलने की वजह से हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। हमारे शरीर को नॉनवेज खाने को पचाने में ज्यादा समय लगता है। पाचन शक्ति कमजोर होने की वजह से खाना नहीं पचता है, जिसकी वजह से पाचन सहित स्वास्थ्य संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। यही कारण है कि इन महीनों में माँसाहार नहीं खाने की सलाह दी जाती है। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि इस महीने में मछलियाँ, पशु, पक्षी सभी में गर्माधान करने की संभावना होती है। अगर किसी गर्भवती मादा का माँस खाने के लिए उसकी हत्या की जाती है तो इसे भी हिंदू धर्म में पाप बताया जाता है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो अगर कोई इंसान गर्भवती जीव को खा लेता है, तो उसके शरीर में हार्मोनल समस्याएँ भी हो सकती हैं।थोड़ी और गहराई में जाऊँ तो आध्यात्मिक दृष्टि से ध्यान, साधना और पूजा में मांस को वर्जित माना गया है। नॉनवेज के सेवन से चित्त का भटकाव भी साधना में सबसे बड़ी बाधा है। दूसरा सावन का यह महीना साधना-सत्कर्म के शास्त्रों में विशेष तौर पर निर्धारित किया गया है। तो ऐसे में जो धार्मिक और आध्यात्मिक वजहों या व्रत आदि के कारण नॉनवेज नहीं खा रहे है या मांसाहार की आड़ लेकर सम्पूर्ण हिन्दू धर्म की मान्यताओं-परम्पराओं का मजाक उड़ाना कहाँ तक उचित है आप खुद ही विचार कर सकते हैं। ऐसे में जहाँ भी वामपंथी-लिबरल्स आपको आपके हिन्दू धर्म-परंपरा को मानने और पालन करने को लेकर ज्ञान दें, वहीं इन्हें या तो पूरी तरह इग्नोर करें या इन्हें ज्ञान देने का नया अवसर देते हुए दूसरे मजहबों की कुछ प्रचलित कुरीतियों की याद दिलाएँ। इन्हें वहीं जलील करें, ये साइड से निकल जाएँगे।