विधानसभा चुनाव में थी एक-दूसरे के खिलाफ
वास्तव में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ अर्से बाद चुनाव लड़ी थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर लोकसभा के छह महीनों बाद हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी कायम रही थी। भाजपा उम्मीदवार मुंबई में पहली बार शिवसेना पर भारी साबित हुए। इसी आधार पर महाराष्ट्र के भाजपा नेताओं ने शिवसेना से अलग चुनाव लडऩे की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था। इधर पिछले दिनों मुंबई से लगी कल्याण महानगरपालिका में अलग लडऩे का पैटर्न शिवसेना और भाजपा दोनों के ही लिए फायदेमंद साबित हुआ था। शिवसेना ने कल्याण पर वर्चस्व कायम रखा और भाजपा ने भी अपने नगरसेवकों की संख्या दोहरी कर ली।
नुकसान रोकने की तैयारी
भाजपा और शिवसेना साथ आकर अलग होकर लडऩे पर हो रहे नुकसान को रोकना चाहते हैं। कांग्रेस-एनसीपी को सत्ता पक्ष फिलहाल कोई बड़ा खतरा नहीं मान रहा। मुस्लिम वर्ग में एआईएमआईएम और समाजवादी पार्टी कांग्रेस के परंपरागत वोट को वैसे भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। रामदास आठवले के शिवसेना-भाजपा के साथ चले जाने के बाद दलित वर्ग में कांग्रेस किसी तरह का सार्थक नेतृत्व खड़ा कर पाने में सक्षम नहीं हो पाई है। हालांकि बीएमसी चुनाव में मोदी के अच्छे दिनों की परीक्षा जरूर होगी।