मजदूरों के हित सुनिश्चित करने के लिए पेंशन और कई अन्य सुविधाएं लेकर आएगी सरकार।
सरकार अब प्रवासी मजदूरों को फिर से परिभाषित कर उनके पंजीकरण की योजना बना रही है ताकि उन्हें सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के दायरे में लाया जाए।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : ओम तिवारी : भारत में कोरोना संकट के कान सबसे ज्यादा शायद प्रवासी मजदूर ही परेशान हुए हैं। कोराना वायरस के दौर में जारी प्रवासी संकट से सबक लेते हुए सरकार 41 सालों बाद ‘प्रवासी मजदूर’ को फिर से परिभाषित करने की तैयारी कर रही है। सरकार अब प्रवासी मजदूरों को फिर से परिभाषित कर उनके पंजीकरण की योजना बना रही है ताकि उन्हें सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के दायरे में लाया जाए। रजिस्ट्रेशन के बाद इन प्रवासी मजदूरों को इम्प्लॉयीज स्टेट इंश्योरेस कॉर्पोरेशन के तहत हेल्थ बेनिफिट भी मिल सकेगा।
लॉकडाउन के दौरान बड़े पैमाने पर लाखों की संख्या में संगठित और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के पैदल पलायन के बाद अब नए कानून की तैयारी की जा रही है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय जल्द ही कैबिनेट को इस बारे में विस्तृत प्रस्ताव भेजने वाला है। केंद्र सरकार की योजना है कि प्रस्तावित कानून को इस साल के आखिर तक लागू कर दिया जाए। श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने इस बात की पुष्टि की कि कानूनी पहलुओं को मजबूत किया जा रहा है। बीजेडी सांसद भतृहरि महताब की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति ने जिस प्रस्वावित कोड को मंजूरी दी है, उसके कुछ प्रावधानों में और बदलाव किया जा सकता है। मौजूदा प्रवासी संकट ने सिस्टम की कमियों को भी उजागर किया है। प्रवासी मजदूरों का कोई एकीकृत रेकॉर्ड तक नहीं है। इंटर-स्टेट माइग्रैंट वर्कमेन ऐक्ट 1979 भी सिर्फ उन संस्थानों या कॉन्ट्रैक्टरों पर लागू होता है जहां 5 या उससे ज्यादा इंटर-स्टेट प्रवासी मजदूर काम करते हैं। इसका मतलब है कि प्रवासी मजदूरों का एक बड़ा तबका इसके दायरे में आता ही नहीं है। रेहड़ी-पटरी लगाने वालों से लेकर घरों में काम करने वाली मेड तक इस कानून के दायरे में नहीं हैं।