भारतीय स्पेस प्रोग्राम के जनक डॉ विक्रम साराभाई की आज 100वीं जयंती।
भारत के परमाणु विज्ञान कार्यक्रम का जनक डॉ. होमी भाभा ने भारत में पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन स्थापित करने में विक्रम साराभाई का समर्थन किया।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : आज माहान भारतीय वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की 100वीं जंयती है। 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में जन्में विक्रम साराभाई ने भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाया। उन्हें आज पूरा देश याद कर रहा है। उनको भारत के स्पेस प्रोग्राम का जनक माना जाता है। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की थी। इन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट हासिल करने से पहले गुजरात कॉलेज में पढ़ाई की। इसके बाद अहमदाबाद में ही उन्होंने फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की। इस समय उनकी उम्र महज 28 साल थी। पीआरएल की सफल स्थापना के बाद की डॉ साराभाई ने कई संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तकनीकी समाधानों के अलावा इनका और इनके परिवार ने आजादी की लड़ाई में भी भरपूर योगदान दिया। साराभाई को उनकी 100वीं जंयती पर गूगल ने खास डूडल बनाकर याद किया। परमाणु उर्जा आयोग के चेयरमैन रहने के साथ-साथ उन्होंने अहमदाबाद के उद्योगपतियों की मदद से आइआइएम अहमदाबाद(IIM Ahmdabad) की भी स्थापना की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। सेटेलाईट इंस्ट्रक्शनल टेलीवीजन एक्सपेरिमेंट (SITE) के लांच में भी साराभाई ने अहम भूमिका निभाई जब इन्होंने 1966 में नासा से इसेक लिए बातचीत की। भारत के परमाणु विज्ञान कार्यक्रम का जनक डॉ. होमी भाभा ने भारत में पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन स्थापित करने में विक्रम साराभाई का समर्थन किया। पहली उड़ान 21 नवंबर, 1963 को सोडियम वाष्प पेलोड के साथ लॉन्च की गई थी। देश के पहले सेटेलाईट आर्यभट्ट को भी लांच करने में इनकी अहम भूमिका रही। ‘नेहरू विकास संस्थान’ के माध्यम से उन्होंने गुजरात की उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह देश-विदेश की अनेक विज्ञान और शोध सम्बन्धी संस्थाओं के अध्यक्ष और सदस्य थे। डॉ. साराभाई अपने दौर के उन गिने-चुने वैज्ञानिकों में से एक थे जो अपने साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों और खासकर युवा वैज्ञानिकों को आगे बढ़ने में मदद करते थे। उन्होंने डॉ.अब्दुल कलाम के करियर के शुरुआती चरण में उनकी प्रतिभाओं को निखारने में अहम भूमिका निभाई। डॉ.कलाम ने खुद कहा था कि वह तो उस फील्ड में नवागंतुक थे। डॉ.साराभाई ने ही उनमें खूब दिलचस्पी ली और उनकी प्रतिभा को निखारा। विक्रम साराभाई को 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार मिला। उन्हें 1966 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था। 52 साल की उम्र में साराभाई का 1971 में निधन हो गया था।