नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन (आरएसएस) खुद को भले ही सक्रिय राजनीति से दूरी बनाकर रखता हो लेकिन इस समय देश के तीनों सर्वोच्च पदों पर उसके संगठन से निकले लोग विराजमान हो गए हैं. सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो मई 2014 में राष्ट्रप्रमुख बने और उसके बाद राष्ट्रपति पद पर रामनाथ कोविंद और अब उप राष्ट्रपति पद पर वेंकैया नायडू की जीत ने आरएसएस को एक राष्ट्रवादी संगठन के रूप में और मजबूत बना दिया है. तीनों नेताओं का व्यक्तित्व भले ही अलग-अलग हो लेकिन इनमें कुछ सामान्य बातें भी हैं जो एक-दूसरे से मेल खाती हैं.
पीएम मोदी, राष्ट्रपति कोविंद और उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू तीनों गरीब परिवार से आते हैं. तीनों का शुरुआती समय काफी संघर्षयुक्त रहा और तीनों ने आरएसएस के लिए प्रचार-प्रसार किया.
नरेंद्र मोदी ने 17 साल की उम्र में 1967 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली. संघ प्रचारक के रूप में नरेंद्र मोदी ने देश-विदेश का दौरा किया. मोदी गुजरात के सीएम बनने से पहले कभी अपने जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ा. लेकिन पहले सीएम और फिर पीएम बनने के बाद ज्यादातर चुनावों में भाजपा को जीत हासिल हुई. रामनाथ कोविंद भी संघ की पृष्ठभूमि से आए. 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद रामनाथ कोविंद तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई के निजी सचिव बने. इसके बाद वे भाजपा नेतृत्व के संपर्क में आए और संघ से जुड़ गए. कोविंद आज राष्ट्रपति हैं. वेंकैया नायडू की जिंदगी भी कुछ ऐसे ही गुजरी है. नायडू युवा काल से ही संघ से जुड़ गए थे और वे बचपन में संघ कार्यालय में ही सोते थे. उस दौरान वेंकैया अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के पोस्टर दीवारों पर चिपकाते थे.
मोदी, कोविंद और नायडू की छवि काफी साफ-सुथरी है. भ्रष्टाचार का कोई आरोप इन तीनों लोगों पर नहीं है. इनका सादगीयुक्त जीवन सभी को आकर्षित करता रहा है. वेंकैया नायडू की अगर बात करें तो इनके प्रशंसक अपनी ही पार्टी में नहीं बल्कि विपक्षी पार्टियों में भी हैं. नायडू के पास 25 साल का संसदीय राजनीति और करीब 45 साल की राजनीतिक पारी का विराट अनुभव है.