तीन तलाक पर बोली भाजपा : कांग्रेस 30 साल पहले यह बिल पास करा सकती थी
सरकार ने इसी साल सितंबर में अध्यादेश जारी किया, उसमें विपक्ष की मांग पर जमानत का प्रावधान जोड़ा
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : तीन तलाक को गैर-कानूनी करार देने से जुड़े नए विधेयक पर गुरुवार को लोकसभा में चर्चा शरू हुई। हंगामे के बीच केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में बिल पेश किया। वहीं, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिल को ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की। हालांकि, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने बिल पर चर्चा शुरू करा दी। भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा- कांग्रेस अगर चाहती तो यह बिल 30 साल पहले पास करा सकती थी। लेकिन, उसने बंटवारे की राजनीति को प्राथमिकता दी। यह बिल इससे पहले दो बार लोकसभा में पारित हो चुका है, लेकिन दोनों मौकों पर यह राज्यसभा में अटक गया। इस बार सरकार चाहती है कि 8 जनवरी को संसद सत्र खत्म होने से पहले इसे दोनों सदनों से पारित करा लिया जाए।मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “तीन तलाक से जुड़ा बिल महत्वपूर्ण है, इसका गहन अध्ययन करने की जरूरत है। यह संवैधानिक मसला है। मैं अनुरोध करता हूं कि इस बिल को ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया है।” ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी (संयुक्त प्रवर समिति) में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं। यदि कोई सदस्य किसी बिल में संशोधन का प्रस्ताव पेश करता है तो उसे ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाता है। इस कमेटी के सदस्यों में कौन शामिल किया जाएगा, इसका फैसला सदन करता है।केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि दुनिया के 20 से अधिक इस्लामिक मुल्कों में तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया गया है। एफआईआर का दुरुपयोग न हो, समझाैते का माध्यम हो अौर जमानत का प्रावधान हो, विपक्ष की मांग पर ये सभी बदलाव बिल में किए जा चुके हैं। यह बिल किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है। जब यह संसद दुष्कर्मियों के लिए फांसी की सजा की मांग कर चुकी है तो यही संसद तीन तलाक को खत्म करने की आवाज क्यों नहीं उठा सकती? चर्चा से पहले लोकसभा में राफेल डील के मुद्दे पर हंगामा हुआ। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने राफेल डील की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की मांग की। हंगामे के चलते कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक स्थगित कर दी गई। दोबारा कार्यवाही शुरू होने के बाद भी हंगामा जारी रहा। इसके बाद कार्यवाही दोपहर 2 बजे तक स्थगित कर दी गई।सरकार ने तीन तलाक को अपराध करार देने के लिए सितंबर में विधेयक पारित किया था। इसकी अवधि 6 महीने की होती है। लेकिन अगर इस दरमियान संसद सत्र आ जाए तो सत्र शुरू होने से 42 दिन के भीतर अध्यादेश को बिल से रिप्लेस करना होता है। मौजूदा संसद सत्र 8 जनवरी तक चलेगा। जनवरी 2017 से सितंबर 2018 तक तीन तलाक के 430 मामले सामने आए थे। इनमें 229 मामले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले और 201 केस उसके बाद के हैं।अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की 1400 साल पुरानी प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था और सरकार से कानून बनाने को कहा था। सरकार ने दिसंबर 2017 में लोकसभा से मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पारित कराया लेकिन राज्यसभा में यह बिल अटक गया, जहां सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है। विपक्ष ने मांग की थी कि तीन तलाक के आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान भी हो।इसी साल अगस्त में भी यह विधेयक लोकसभा से पारित हुआ लेकिन राज्यसभा में अटक गया। इसके बाद सरकार सितंबर में अध्यादेश लेकर आई। इसमें विपक्ष की मांग काे ध्यान में रखते हुए जमानत का प्रावधान जोड़ा गया। अध्यादेश में कहा गया कि तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल होगी।