जजों की नियुक्ति प्रक्रिया का मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुचा

नई दिल्ली : शीर्ष न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) को अंतिम रूप देने में हो रही देरी के मसले पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनवाई के लिए तैयार हो गया। अदालत ने अटॉर्नी जनरल से जवाब तलब करते हुए कहा कि एमओपी को अंतिम रूप देने के लिए इस अदालत ने हालांकि कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की थी फिर भी इसे अनिश्चितकाल के लिए नहीं लटकाया जा सकता।

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने कहा, ‘व्यापक जनहित में एमओपी को अंतिम रूप देने में आगे और देरी नहीं होनी चाहिए।’ पीठ ने कहा, सर्वोच्च अदालत ने 2015 में आदेश दिया था कि शीर्ष न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए एमओपी होना चाहिए और इस आदेश को दिए हुए एक साल व दस महीने पहले ही बीत चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता आरपी लूथरा की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में लूथरा ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टो में नियुक्तियों को इस आधार पर चुनौती दी है कि अदालत के आदेश के मुताबिक अभी तक एमओपी को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया। इसके साथ ही अदालत ने वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन को मामले में न्यायमित्र नियुक्त किया और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को नोटिस जारी कर दिया। मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी।

मालूम हो कि अक्टूबर 2015 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने संसद द्वारा पारित एनजेएसी एक्ट को रद कर दिया था और केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह प्रधान न्यायाधीश के साथ सलाह मशविरा करके नया एमओपी तैयार करे।

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