‘कौल संन्यास’ – शून्य से अनंत की यात्रा का अहम पड़ाव : श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ
हमारे एक पत्रकार को उनकी इस दीक्षा प्रक्रिया का साक्षी होने का अवसर मिला। हम श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ के साथ लगातार सम्पर्क में थे। उन्होंने हमें पहले ही बताया था कि वह 05 जुलाई 2020 के दिन गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सन्यास दीक्षा ग्रहण करेंगी। चंद्र ग्रहण और ‘माँ सिद्धि लक्ष्मी’ जयंती होने के कारण यह दिन और भी अत्यंत पवित्र हो गया था।
श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ से एक लम्बे समय अंतराल के बाद हमें बात करने का मौक़ा मिला। एक नए व्यक्तित्व और नाम के साथ उन्होंने हमसे अपने संन्यास दीक्षा के अनुभवों को साझा किया। लॉकडाउन के कारण हम उनसे लम्बे समय से मिल नहीं पाए थे और उन्होंने यह समय महाराष्ट्र में व्यतीत किया था। इसी अवसर पर उन्होंने अत्यंत जटिल लेकिन उतना ही सुंदर सन्यास लिया जो ‘कौल सिद्ध धर्म’ के अंतर्गत ‘कौल संहार संन्यास’ कहा जाता है।
हमारे एक पत्रकार को उनकी इस दीक्षा प्रक्रिया का साक्षी होने का अवसर मिला। हम श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ के साथ लगातार सम्पर्क में थे। उन्होंने हमें पहले ही बताया था कि वह 05 जुलाई 2020 के दिन गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर संन्यास दीक्षा ग्रहण करेंगी। चंद्र ग्रहण और ‘माँ सिद्धि लक्ष्मी’ जयंती होने के कारण यह दिन और भी अत्यंत पवित्र हो गया था। हमने उनसे इस संन्यास दीक्षा में शामिल होने की अनुमति ली थी क्योंकि उन्होंने हमें बताया था कि वह जो सन्यास लेने वाली हैं वह समाज में प्रचलित अन्य सन्यासों से बिलकुल अलग प्रकृति का है। यह कौल सिद्ध संन्यास है। उनके अनुसार कौल सिद्ध सन्यास ‘सृष्टि’, स्थिति’ और ‘संहार’, तीन प्रकार के होते हैं और उन्होंने इनमें से सबसे जटिल ‘कौल संहार संन्यास’ की दीक्षा ली है। हमारे रिपोर्टर के अनुसार दीक्षा संस्कार के दौरान शिव शक्ति के रूप ‘स्वच्छंद भैरव’ और मां ‘कुरुकुल्ला’ की बड़ी मूर्तियां रखी गई थीं। इन मूर्तियों के बगल में उनके गुरु का एक बड़ा राजसिक सिंहासन रखा गया थाl सिंहासन के सामने ‘हवन कुंड’ और ‘तर्पण कुंड’ थे इन दोनों के बीच सन्यास यंत्र था। सन्यास यंत्र के ऊपर दूसरा सन्यास यंत्र लटकाया गया था। यह लटकाया गया यंत्र लकड़ी का बना था और गोल आकार का था। इसके दोनों पृष्ठों में ‘टांकरी लिपि’ में मंत्र लिखे गए थे।
इस पूरी व्यवस्था के बगल में लाल रंग के कपड़े का प्रयोग करके एक स्थान को बंद किया गया था। इस स्थान पर सन्यास दीक्षा की प्रक्रिया संपन्न होनी थी। सन्यास दीक्षा की प्रक्रिया का पहला हिस्सा कर्मकांड पर आधारित था। श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ पूर्ण राजसिक पहनावा पहनकर इस दीक्षा प्रक्रिया में शामिल हुईं क्योंकि ‘कौल सिद्ध धर्म’ के अनुसार ‘संन्यास दीक्षा’ के अवसर पर इसी तरह के राजसिक वस्त्र पहनने का विधान है।
उनके बिल्कुल सामने एक सफेद शंख और एक बड़ा थाल था जिसमें जल गिराया जाना था। हमें यह भी पता चला कि यह सफेद शंख सन्यास के शाक्त परंपरा से संबंध रखता है। यह संहार दीक्षा शाक्त परंपरा के अनुसार ही होनी थी। कर्मकांड के दौरान हमने उन्हें शंख से थाल में पानी गिराते देखा, जिसे तर्पण कहा जाता है। शुरुआती कर्मकांड और पूजन के बाद ‘श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ’ ने लाल रंग के कपड़े से ढके हुए स्थान में प्रवेश किया।
यह लाल रंग का पर्दा हल्का पारदर्शी था और इसके अंदर सन्यास यंत्र को देखा जा सकता था। वहां हमें पता चला कि यह संन्यास यंत्र ‘संहार यंत्र’ है और क्योंकि ‘श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ’ ‘कौल संहार सन्यास दीक्षा ले रही थीं इसलिए संहार यंत्र को वहां रखा गया था। संन्यास के बाद एक होम और हवन का क्रम रखा गया, जिसके बाद सन्यास दीक्षा पूर्ण हो गई।
यह पूरा का पूरा दीक्षा सत्र कुछ घंटों तक चला। दीक्षा के पूर्ण होने के उपरांत श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ का जीवन एक पूर्णतः अलग रास्ते पर चल पड़ा है क्योंकि उन्होंने जो संहार दीक्षा ली है वह बहुत असाधारण है और बहुत विरले साधकों को ही मिल पाती है। इस साधना दीक्षा को लेने का अधिकार केवल उसी व्यक्ति को होता है जो पहले से ही गृहस्थ जीवन को जी चुका होता है। साथ ही वह बाह्य संसार और समाज में सफल जीवन जीकर आया होता है। ऐसा व्यक्ति निश्चय ही सौभाग्यशाली होता है। श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ ने संन्यास के लिए आवश्यक इन सभी मानदंडों को पूरा किया था। इस संन्यास दीक्षा के सफलतापूर्वक समापन के बाद वह एक सामान्य साधिका से ऊपर उठकर ‘कौल सिद्ध धर्म’ की एक अत्यंत श्रद्धेय पदवी ‘कौल योगिनी संन्यासिनी’ पर पहुंच गई हैं।
बाद में उनसे बातचीत के दौरान हमने उनसे अचानक संन्यास के फैसले के बारे में पूछा क्योंकि यह निर्णय जीवन के कुछ चरम निर्णयों में से एक गिना जाता है। साथ ही युवावस्था में संन्यास का निर्णय लेना भी जीवन में एक बड़ी उपलब्धि है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि संन्यास का फैसला उन्होंने दो प्रमुख कारणों से लिया है, पहला कारण- मानव जाति और मानवता से संबंधित है। मानवता की सेवा केवल ज्ञान से की जा सकती है। ऐसा ज्ञान जो मानवता की पीड़ाओं को हर सके और समाज में व्यक्ति की निर्भरता को कम करे। सन्यास का दूसरा कारण- पूर्ण रूप से परमार्थ पर आधारित है। परमार्थ का मतलब है ऐसा जीवन जो दूसरों के लिए जिया जाय। जब व्यक्ति ‘कौल संन्यास’ लेता है तब वह अपने सभी व्यक्तिगत रिश्ते-नातों से ऊपर उठकर संपूर्ण मानवता को ही अपना परिवार और मित्र मानने लगता है। ऐसा व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति या समूह के प्रति कोई दुर्भावना नहीं रखता। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कौल संन्यास उनकी शून्य से अनंत की ओर जा रही आध्यात्मिक यात्रा का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। कौल सिद्ध सन्यास अन्य संप्रदायों में दिए जाने वाले सन्यास से अलग है क्योंकि अन्य संप्रदायों में दिया जाने वाला सन्यास तंत्र में नहीं बल्कि ‘परित्याग’ या ‘वैराग्य’ पर केंद्रित होता है। ‘कौल सिद्ध सन्यास’ ब्रह्मांड और उसकी गति पर आधारित होता है, कौल सिद्ध संन्यासी उच्च सद्गुणों को अपने अंदर धारण करता है और उन्हीं के अनुसार इस सृष्टि की उन्नति के लिए अपना जीवन जीता है। मां शिवाग्नी ने कहा कि संन्यास के बारे में वह आने वाले दिनों में और भी बातें बताएंगी। श्री योगिनी माँ शिवाग्नि नाथ ने बताया कि वह आने वाले कुछ समय के लिए फिर से अनुपस्थित रहेंगी ताकि वह अपनी संन्यास साधना को पूरा कर सकें। वह इस साधना को शीघ्र से शीघ्र संपन्न करना चाह रही हैं ताकि इसके बाद वह सन्यास में दिए गए अपने वचनों का पालन कर सकें। जब हमने उनसे पूछा कि बातचीत के लिए अगली बार वह हमसे कब मिलेंगी तो उन्होंने खुलकर जवाब दिया कि जैसे ही मेरी साधना पूर्ण हो जाएगी मैं बात करने के लिए उपलब्ध हो जाऊंगी।